शिकायत रब से करता हूँ की तुम मिलते नहीं मुझको, मगर खुद को तेरे काबिल बनाना रोज भूल जाता हूँ।
Saturday, 20 February 2016
नहीं मिलेगा वो मंदिर की घंटियों में , न ही छुपा है तीर्थ - स्थानों में
हृदय में तराशो मूरत उसकी या मिलेगा वो इंसानों में
हृदय में तराशो मूरत उसकी या मिलेगा वो इंसानों में
""यहां मज़बूत से मज़बूत लोहा टूट जाता है,
कईं झूठे इकठ्ठे हो जायें तो सच्चा टूट जाता है...""
कईं झूठे इकठ्ठे हो जायें तो सच्चा टूट जाता है...""
जंग और इश्क़ दोनों अंततः विनाश ही करते है फिर भी लोग इन्हें करने से कतराते नही।
शिकायत रब से करता हूँ की तुम मिलते नहीं मुझको, मगर खुद को तेरे काबिल बनाना रोज भूल जाता हूँ।
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