Tuesday, 29 December 2015

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भीम दोहे

भीम दोहे
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नीच समझ जिस भीम को, देते सब दुत्कार ।
कलम उठाकर हाथ में, कर गये देश सुधार ।।
जांत-पांत के भेद की, तोड़ी हर दीवार ।
बहुजन हित में भीम ने, वार दिया परिवार ।।
पानी-मंदिर दूर थे, मुश्किल कलम-किताब ।
दांव लगा जब भीम का, कर दिया सब हिसाब ।।
ऊँचेपन की होड़ में,
नीचे झुका पहाड़ ।
कदम पड़े जब भीम के,
हो गया शुद्ध महाड़ ।।
पारस ढूँढें भीम को,
आँख बहाये नीर ।
पढे-लिखे हैं सैंकड़ों,
नही भीम सा वीर ।।
दिल में सब जिंदा रखे, बुद्ध, फुले व कबीर ।
छोड़ वेद-पुराण सभी, भीम हुए बलवीर ।।
झूठ और पाखंड की, सहमी हर दुकान ।
भेदभाव से जो परे,
रच दिया संविधान ।।
रोटी-कपड़ा-मकां का, दिया हमें अधिकार ।
पूज रहे तुम देवता,
भूल गये उपकार ।।
भेदभाव का विष दिया, सबने कहा अछूत ।
जग सारा ये मानता,
था वो सच्चा सपूत ।।
भीम तब दिन-रात जगे, दिया मान-सम्मान ।
लाज रखो अब मिशन की,अर्पित कर दो जान।।
जय भीम

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