Monday, 14 September 2015

Tasvire bhi ye kya khoob hoti hai.
Beet gaye jo pal unki sawoot hoti hai,
Kabhi chere par muskan kabhi ankho ko nami ki bjah hoti hai ye tasvire
Ye tasvire bhi kya khoob hoti hai,

Thursday, 10 September 2015

*****| इश्क़-ए-मुसाफिर |*****

*****| इश्क़-ए-मुसाफिर |*****
मैं तो एक मुसाफिर, तेरे नूर का दीवाना हूँ,
कर ले यकीन एक बार मेरा, तेरा मैं ही परवाना हूँ !
जलता हूँ दिन रात आग में, तड़प शिकन सब भूल गया,
जीवन बस एक आग सा लगता, मैं जीना भी भूल गया,
तेरे शौक का मारा -२ , तेरा मैं ही एक किनारा हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...
प्यार –मुहब्बत खेल नहीं है, जीके सितम सब सीख लिया,
अँधियारे कमरे के भीतर, रोना मैंने सीख लिया,
कह दे दिल की जुबानी -२ , तेरा मैं ही एक सहारा हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...
डर न रहा अब ज़माने का, वक़्त नहीं आज़माने का,
ख़्वाब यूं बुनता रहता हूँ, एक- झलक मिल पाने का
प्यार की कोई शर्त नहीं-२ , फिर मैं क्यों बेगाना हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...

ritesham shastri

***** सिक्का *****


वो ख़त निशानी, मेरे चिराग़ थे,
जिन्हे शौक से तूने बुझा दिया |
वो इश्क़, वो बेखुदी की दौलतें,
जिन्हे अश्क़ बहकर भी, सँजोया था,
वो नशे में तनहाई की सिसकियाँ,
जिनमें मेरा ज़मीर भी रोया था,
वो मंज़र वीरानी, मेरे ख्वाब थे,
जिन्हे शौक से तूने मिटा दिया |वो ख़त निशानी ...
तू हुई भी रुख़सत, उन के लिए,
जिन्हे कुबूल मेरे सबब न था,
तूने साबित बेवफा, मुझको किया,
फ़ितरत-ए-वफ़ा का तुझको इल्म न था,
एक महक किताब के गुलाब में थी,
जिन्हे शौक से तूने भुला दिया | वो ख़त निशानी...
वो वक़्त, जवानी , मेरे फ़िराक़ थे,
जो तूने मिटाये, मेरे ताज़ थे,
मेरा एक सिक्का, दौलत-ए-कुबूल का,
तेरे बटुए में रहता था सदा,
वो खास सिक्का मेरे प्यार का,
सरे बाज़ार तूने चला दिया | वो ख़त निशानी ..

ritesham shastri


***** सिक्का *****


वो ख़त निशानी, मेरे चिराग़ थे,
जिन्हे शौक से तूने बुझा दिया |
वो इश्क़, वो बेखुदी की दौलतें,
जिन्हे अश्क़ बहकर भी, सँजोया था,
वो नशे में तनहाई की सिसकियाँ,
जिनमें मेरा ज़मीर भी रोया था,
वो मंज़र वीरानी, मेरे ख्वाब थे,
जिन्हे शौक से तूने मिटा दिया |वो ख़त निशानी ...
तू हुई भी रुख़सत, उन के लिए,
जिन्हे कुबूल मेरे सबब न था,
तूने साबित बेवफा, मुझको किया,
फ़ितरत-ए-वफ़ा का तुझको इल्म न था,
एक महक किताब के गुलाब में थी,
जिन्हे शौक से तूने भुला दिया | वो ख़त निशानी...
वो वक़्त, जवानी , मेरे फ़िराक़ थे,
जो तूने मिटाये, मेरे ताज़ थे,
मेरा एक सिक्का, दौलत-ए-कुबूल का,
तेरे बटुए में रहता था सदा,
वो खास सिक्का मेरे प्यार का,
सरे बाज़ार तूने चला दिया | वो ख़त निशानी ..

ritesham shastri


शब्द वहीं पनपते हैं !

सूने कमरे के कोनों में,
बीते अक्स उभरतें हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
कुछ को अक्स डरता है,
कुछ को अक्स हर्षाता है,
विचार विकृति जो कुछ भी है,
कंठ में प्राण उभरते हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !

ritesham shastri
***|और यूँ बदरी बरस पड़ी |***
सुरमई आभा, लहराती घटा,
ये बदरी है या रूप छटा,
इसको मैंने बढ़ते देखा,
यौवन रंग से घिरते देखा,
इसकी बरसने की तड़प भी देखी,
इसकी करवट बदल भी देखी,
सुबह की गुजली चादर सी,
हया की इसमें शिकन भी देखी,
कल पहाड़ से आलिंगन थी,
आज मैदान में विरही देखी,
कुछ बूंदे उमस मायूसी की,
कुछ अंधड़ अनमना सा देखा,
जैसे, बदरी सोची लौट जाऊँ,
फिर पर्वत की बाहों में,
जी लूँ जीवन एक बार फिर,
मैं उन्मुक्त राहों में,
फिर ख्याल उसे किसान का आया,
फिर निजता का मुखोटा हटाया,
फिर देखी पौधों की आशा,
और अमलतास की प्रत्याशा,
पीले रंग को आकुल था वो,
धरती सूखी व्याकुल था वो,
रोक न सकी खुद सुबक पड़ी,
और यूँ बदरी बरस पड़ी !!!

ritesham
कोई अंधड़ रेतीला सा कल,
मेरी आँखों को धुंधला गया |
मैंने सब्र से मेघ बाट-जोही थी,
खारे-आब से देह भिगोई थी, 
कुछ राहत घाम से मिली मगर,
जाने क्या याद दिला गया !
कोई अंधड़ रेतीला....
मुझे इश्क़-आंधी दिन वो याद आए,
जब तेरे दुपट्टे से आँख छिपाई थी,
वो बड़ी बूंद बरसता बादल मुझे,
भीतर तक रुला गया,
कोई अंधड़ रेतीला सा कल,
मेरी आँखों को धुंधला गया |

ritesham shastri