Thursday, 10 September 2015

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*****| इश्क़-ए-मुसाफिर |*****

*****| इश्क़-ए-मुसाफिर |*****
मैं तो एक मुसाफिर, तेरे नूर का दीवाना हूँ,
कर ले यकीन एक बार मेरा, तेरा मैं ही परवाना हूँ !
जलता हूँ दिन रात आग में, तड़प शिकन सब भूल गया,
जीवन बस एक आग सा लगता, मैं जीना भी भूल गया,
तेरे शौक का मारा -२ , तेरा मैं ही एक किनारा हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...
प्यार –मुहब्बत खेल नहीं है, जीके सितम सब सीख लिया,
अँधियारे कमरे के भीतर, रोना मैंने सीख लिया,
कह दे दिल की जुबानी -२ , तेरा मैं ही एक सहारा हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...
डर न रहा अब ज़माने का, वक़्त नहीं आज़माने का,
ख़्वाब यूं बुनता रहता हूँ, एक- झलक मिल पाने का
प्यार की कोई शर्त नहीं-२ , फिर मैं क्यों बेगाना हूँ !!
मैं तो एक मुसाफिर ...

ritesham shastri

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