Thursday, 10 September 2015

Social Mention

गौरय्या
प्रातः मंत्र सा कलरव करती,
कुछ तिनके बिखेरती आँगन में,
भाभी के संग बातें करती,
बहुत चहचहाती थी सावन में,
एक जोड़ा घर-घर बसता था,
सारा दिन बस घौंसला सजता था,
वो बहस चिरोंटे से करती,
उसको बस अपना काम ही जचता था,
थोड़ी धूप भी थी उसकी,
थोड़ा आसमान भी था उसका,
घर के अनाज में था एक अनकहा हिस्सा,
ये था मेरी गौरय्या का किस्सा !

ritesham shastri

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