***|और यूँ बदरी बरस पड़ी |***
सुरमई आभा, लहराती घटा,
ये बदरी है या रूप छटा,
इसको मैंने बढ़ते देखा,
यौवन रंग से घिरते देखा,
इसकी बरसने की तड़प भी देखी,
इसकी करवट बदल भी देखी,
सुबह की गुजली चादर सी,
हया की इसमें शिकन भी देखी,
कल पहाड़ से आलिंगन थी,
आज मैदान में विरही देखी,
कुछ बूंदे उमस मायूसी की,
कुछ अंधड़ अनमना सा देखा,
ये बदरी है या रूप छटा,
इसको मैंने बढ़ते देखा,
यौवन रंग से घिरते देखा,
इसकी बरसने की तड़प भी देखी,
इसकी करवट बदल भी देखी,
सुबह की गुजली चादर सी,
हया की इसमें शिकन भी देखी,
कल पहाड़ से आलिंगन थी,
आज मैदान में विरही देखी,
कुछ बूंदे उमस मायूसी की,
कुछ अंधड़ अनमना सा देखा,
जैसे, बदरी सोची लौट जाऊँ,
फिर पर्वत की बाहों में,
जी लूँ जीवन एक बार फिर,
मैं उन्मुक्त राहों में,
फिर ख्याल उसे किसान का आया,
फिर निजता का मुखोटा हटाया,
फिर देखी पौधों की आशा,
और अमलतास की प्रत्याशा,
पीले रंग को आकुल था वो,
धरती सूखी व्याकुल था वो,
रोक न सकी खुद सुबक पड़ी,
और यूँ बदरी बरस पड़ी !!!
फिर पर्वत की बाहों में,
जी लूँ जीवन एक बार फिर,
मैं उन्मुक्त राहों में,
फिर ख्याल उसे किसान का आया,
फिर निजता का मुखोटा हटाया,
फिर देखी पौधों की आशा,
और अमलतास की प्रत्याशा,
पीले रंग को आकुल था वो,
धरती सूखी व्याकुल था वो,
रोक न सकी खुद सुबक पड़ी,
और यूँ बदरी बरस पड़ी !!!
ritesham
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