सूने कमरे के कोनों में,
बीते अक्स उभरतें हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
बीते अक्स उभरतें हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
कुछ को अक्स डरता है,
कुछ को अक्स हर्षाता है,
विचार विकृति जो कुछ भी है,
कंठ में प्राण उभरते हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
कुछ को अक्स हर्षाता है,
विचार विकृति जो कुछ भी है,
कंठ में प्राण उभरते हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
ritesham shastri
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