Thursday, 10 September 2015

Social Mention

कल्पना
शक्ल दूँ या रहने दूँ तुमको,
मेरी उलझी कल्पना,
या उकेर दूँ सतरंगी सी,
धरा श्रृंगार अल्पना !
एहसास में दिन ढल जाता है,
तुम सजीव संजना,
क्षितिज सूर्य सी नारंगी तुम,
आँखें कत्थई व्यंजना !

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