Thursday, 10 September 2015

Social Mention

सलवट तरसी, मेहंदी तरसी,
तरसा मोरा बावरा मन,
मीठी तसल्ली फीकी लागे,
फीकों भयो मेरो सँवारो रंग !
रास ज्यौं तरसे चितवन- छापरी
जौवन भर भर घूंट पिये है,
मोर बाग में नाच अकेले,
मोरनी हिय पाषाण लिए है !
रोज देहरी बाट जोहत हूँ,
बिन पलकन झपकाए,
झूला पींग बढ़े न सावन,
पल पल जीय घबराए !
मन की पीर कूँ मन समझे है,
तन की पीर कूँ जाने सावन,
आँगन के दो फूल बिछड़ गए,
नजरा गयो जोड़ा मन-भावन !
पिछले बरस जो रूठी सजना,
पायलिया दे, मोहे मना लियो,
अबके बरस न कछु कहूँगी,
बिछुआ से मन हटा लियो !
ऐसों आकुल बृज मण्डल है,
प्राण भरो तुम आइके,
वैसे बनते फिरत हो छैला,
फिर मुरली मनोहर काइके !!

ritesham shastri

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