पत्ते पतझड़ के
बिखरे पत्ते पतझड़ के,
यूँ खामोशी से कहते हैं,
खर-खर, कर-कर इस आवाज में
हम पीड़ा भी सहते हैं,
यूँ खामोशी से कहते हैं,
खर-खर, कर-कर इस आवाज में
हम पीड़ा भी सहते हैं,
मेघ बूंद एक चाह है दिल में,
घमस- घाम एक आह है दिल में,
अंधड़ रेतीला सा जब
कोंपल पलकें उजाड़ता है,
और सूर्य का अट्टहास,
फुनगी को ताड़ता है,
मेरे धैर्यशाली पेड़ का जब सहास छूट जाता है,
टहनी में लगा वो भावुक पत्ता टूट जाता है !!
घमस- घाम एक आह है दिल में,
अंधड़ रेतीला सा जब
कोंपल पलकें उजाड़ता है,
और सूर्य का अट्टहास,
फुनगी को ताड़ता है,
मेरे धैर्यशाली पेड़ का जब सहास छूट जाता है,
टहनी में लगा वो भावुक पत्ता टूट जाता है !!
फिर भी आखिरी उम्मीद पूरी करने में,
मैं धरा पर गिर पड़ता हूँ !
बनाने को एक उपजाऊ कल,
घिस -घिस कर मरने को चुनता हूँ,
पर हे मनुष्य तू ये क्या करता है,
मेरे ढेर क्यूँ जमा करता है,
क्यूँ मुखाग्नि मेरे सपनों को,
क्यूँ प्रदूषण किया करता है !!
मैं धरा पर गिर पड़ता हूँ !
बनाने को एक उपजाऊ कल,
घिस -घिस कर मरने को चुनता हूँ,
पर हे मनुष्य तू ये क्या करता है,
मेरे ढेर क्यूँ जमा करता है,
क्यूँ मुखाग्नि मेरे सपनों को,
क्यूँ प्रदूषण किया करता है !!