वो ख़त निशानी, मेरे चिराग़ थे,
जिन्हे शौक से तूने बुझा दिया |
वो इश्क़, वो बेखुदी की दौलतें,
जिन्हे अश्क़ बहकर भी, सँजोया था,
वो नशे में तनहाई की सिसकियाँ,
जिनमें मेरा ज़मीर भी रोया था,
वो मंज़र वीरानी, मेरे ख्वाब थे,
जिन्हे शौक से तूने मिटा दिया |वो ख़त निशानी ...
जिन्हे अश्क़ बहकर भी, सँजोया था,
वो नशे में तनहाई की सिसकियाँ,
जिनमें मेरा ज़मीर भी रोया था,
वो मंज़र वीरानी, मेरे ख्वाब थे,
जिन्हे शौक से तूने मिटा दिया |वो ख़त निशानी ...
तू हुई भी रुख़सत, उन के लिए,
जिन्हे कुबूल मेरे सबब न था,
तूने साबित बेवफा, मुझको किया,
फ़ितरत-ए-वफ़ा का तुझको इल्म न था,
एक महक किताब के गुलाब में थी,
जिन्हे शौक से तूने भुला दिया | वो ख़त निशानी...
जिन्हे कुबूल मेरे सबब न था,
तूने साबित बेवफा, मुझको किया,
फ़ितरत-ए-वफ़ा का तुझको इल्म न था,
एक महक किताब के गुलाब में थी,
जिन्हे शौक से तूने भुला दिया | वो ख़त निशानी...
वो वक़्त, जवानी , मेरे फ़िराक़ थे,
जो तूने मिटाये, मेरे ताज़ थे,
मेरा एक सिक्का, दौलत-ए-कुबूल का,
तेरे बटुए में रहता था सदा,
वो खास सिक्का मेरे प्यार का,
सरे बाज़ार तूने चला दिया | वो ख़त निशानी ..
जो तूने मिटाये, मेरे ताज़ थे,
मेरा एक सिक्का, दौलत-ए-कुबूल का,
तेरे बटुए में रहता था सदा,
वो खास सिक्का मेरे प्यार का,
सरे बाज़ार तूने चला दिया | वो ख़त निशानी ..
ritesham shastri