Thursday, 10 September 2015

***** सिक्का *****


वो ख़त निशानी, मेरे चिराग़ थे,
जिन्हे शौक से तूने बुझा दिया |
वो इश्क़, वो बेखुदी की दौलतें,
जिन्हे अश्क़ बहकर भी, सँजोया था,
वो नशे में तनहाई की सिसकियाँ,
जिनमें मेरा ज़मीर भी रोया था,
वो मंज़र वीरानी, मेरे ख्वाब थे,
जिन्हे शौक से तूने मिटा दिया |वो ख़त निशानी ...
तू हुई भी रुख़सत, उन के लिए,
जिन्हे कुबूल मेरे सबब न था,
तूने साबित बेवफा, मुझको किया,
फ़ितरत-ए-वफ़ा का तुझको इल्म न था,
एक महक किताब के गुलाब में थी,
जिन्हे शौक से तूने भुला दिया | वो ख़त निशानी...
वो वक़्त, जवानी , मेरे फ़िराक़ थे,
जो तूने मिटाये, मेरे ताज़ थे,
मेरा एक सिक्का, दौलत-ए-कुबूल का,
तेरे बटुए में रहता था सदा,
वो खास सिक्का मेरे प्यार का,
सरे बाज़ार तूने चला दिया | वो ख़त निशानी ..

ritesham shastri


शब्द वहीं पनपते हैं !

सूने कमरे के कोनों में,
बीते अक्स उभरतें हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !
कुछ को अक्स डरता है,
कुछ को अक्स हर्षाता है,
विचार विकृति जो कुछ भी है,
कंठ में प्राण उभरते हैं,
शब्द वहीं पनपते हैं !

ritesham shastri
***|और यूँ बदरी बरस पड़ी |***
सुरमई आभा, लहराती घटा,
ये बदरी है या रूप छटा,
इसको मैंने बढ़ते देखा,
यौवन रंग से घिरते देखा,
इसकी बरसने की तड़प भी देखी,
इसकी करवट बदल भी देखी,
सुबह की गुजली चादर सी,
हया की इसमें शिकन भी देखी,
कल पहाड़ से आलिंगन थी,
आज मैदान में विरही देखी,
कुछ बूंदे उमस मायूसी की,
कुछ अंधड़ अनमना सा देखा,
जैसे, बदरी सोची लौट जाऊँ,
फिर पर्वत की बाहों में,
जी लूँ जीवन एक बार फिर,
मैं उन्मुक्त राहों में,
फिर ख्याल उसे किसान का आया,
फिर निजता का मुखोटा हटाया,
फिर देखी पौधों की आशा,
और अमलतास की प्रत्याशा,
पीले रंग को आकुल था वो,
धरती सूखी व्याकुल था वो,
रोक न सकी खुद सुबक पड़ी,
और यूँ बदरी बरस पड़ी !!!

ritesham
कोई अंधड़ रेतीला सा कल,
मेरी आँखों को धुंधला गया |
मैंने सब्र से मेघ बाट-जोही थी,
खारे-आब से देह भिगोई थी, 
कुछ राहत घाम से मिली मगर,
जाने क्या याद दिला गया !
कोई अंधड़ रेतीला....
मुझे इश्क़-आंधी दिन वो याद आए,
जब तेरे दुपट्टे से आँख छिपाई थी,
वो बड़ी बूंद बरसता बादल मुझे,
भीतर तक रुला गया,
कोई अंधड़ रेतीला सा कल,
मेरी आँखों को धुंधला गया |

ritesham shastri
कल्पना
शक्ल दूँ या रहने दूँ तुमको,
मेरी उलझी कल्पना,
या उकेर दूँ सतरंगी सी,
धरा श्रृंगार अल्पना !
एहसास में दिन ढल जाता है,
तुम सजीव संजना,
क्षितिज सूर्य सी नारंगी तुम,
आँखें कत्थई व्यंजना !
'वो ख़ामोशी भी प्यारी सी'
दो लव्ज़ बरसते बादल से, एक बात अधूरी रात सी,
दो प्यार भरे दिल पागल से, एक चाहत पूरी जीवन सी !!
एक रंग बदलता यौवन सा, एक करवट लेती आहाट सी,
एक यार मेरा मदहोश सा, एक गंध भरी गर्माहट सी !!
वो दौर जंग- मुहब्बत सा, वो रजनीगंधा शबनम सी,
वो जीत- हार इकरार सा, वो ख़ामोशी भी प्यारी सी !!

ritesham shastri
जीवन स्वप्न / नदी गाथा है, सुनते चलो, सुनाते चलो !
मिले किनारा सुस्ता लो पल, पत्थर पानी बनाते चलो !!
लगेंगे सतरंगी मौसम सारे, गाते चलो, गवाते चलो !
सुख की धारा, दुख की धारा, बहते चलो, बहाते चलो !!
जीवन स्वप्न नदी गाथा है ...
कुछ किनारे मीत मिलेंगे, मीत- मन -प्रीत निभाते चलो !
स्वप्न के नायक स्वयं पाओगे, मन झूला-पींग बढ़ाते चलो !!
जीवन स्वप्न नदी गाथा है ...
नदी सा जीवन अविरल है, नैया खेते चलो, खिवाते चलो !
स्वप्न सा जीवन चंचल है, ख्वाब बुनते चलो, बनाते चलो !!
जीवन स्वप्न नदी गाथा है ...
जीवन यात्रा है समुद्र तक, पुण्य करो, पुण्य कराते चलो !
जीवन उलझन है सुबह तक, अंतहीन निद्रा सोओ, सुलाते चलो !!
जीवन स्वप्न नदी गाथा है 

ritesham shastri